धर्म एवं दर्शन >> प्राकृत भाषा में रामकथा प्राकृत भाषा में रामकथाडॉ. नीलम जैन
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पउमचरियं सुसमृद्ध प्राकृत भाषा के अगाध सिन्धु का अमूल्य, दिव्य, अलौकिक रत्न है। सारस्वत श्रमण- परम्पराध्वजी आ. विमलसूरि द्वारा स्वयं इस कृति का रचनाकाल प्रथम शती वर्णित है, विगत 2000 वर्षों से प्राचीनतम महाकाव्य की संप्रेरणा से रामकथा आधृत शताधिक ग्रन्थ भिन्न-भिन्न भाषाओं में कृतिबद्ध हुए हैं।
रामकथा के इस विशालकाय ग्रन्थ का सुव्यवस्थित सुसम्पादन अपनी विद्वत्तापूर्ण मनीषा से भारतीय भाषाओं, धर्म, संस्कृति के तलस्पर्शी ज्ञाता जर्मन विद्वान डॉ. हर्मन याकोबी ने सन् 1914 में भावनगर में किया था, तदुपरान्त इसी कृति की महत्ता और गुणवत्ता का अभिज्ञान हुआ।
ज्ञान-विज्ञान एवं जीवन दर्शन के विविध पक्षों के इस अनुपमेय कोश में रामकथा का नवीन दृष्टिकोण संवर्द्धित है। सभी पात्रों का चरित्र प्रभावोत्पादक है, ज्ञान-विज्ञान, भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, धर्म, दर्शन आदि सभी धाराओं का प्रवाह निश्चित रूप से रामभक्तों, साहित्यप्रेमियों, भाषाविदों, तत्त्ववेत्ताओं को चिन्तन, भक्ति के नये क्षितिज प्रदान करेगा। अकादमिक स्तर पर भी नये-नये शोध को सशक्त आधार प्राप्त होंगे। अस्तु, इस कृति के प्रकाशन से अनेक अन्तःसाक्ष्य उदघाटित होंगे।
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